फिर कभी ना आए वह रात केहर वाली,
फिर कभी ना आए वह रात टेरर वाली,
उस रात जब दुश्मन घुस आया बनके मेहमान
कर दिया उसने मुझे घायल और लहू लुहान
वह रात जब मेरे किनारों का मिला उनको सहारा,
समुन्दर कि लहरों ने पानी के साथ खौफ्फ़ पहुँचाया;
उसके बाद जो मय्हेम मचा !!! बस याद करने से रूह घबराता है,
दहशत का वह दस्तक कानों में आज भी बजता है,
स्टेशन बन गया था खून के होली का मैदान,
मेरी आन, मेरी शान, मेरा ताज हुआ घायल,
सलाम और शुक्रान मेरे पहरेदारों को,
मेरे दामन को बचाते बचाते कुर्बान की अपनी जान;
बीत गए इस हादसे को छह साल आज,
मेरे घांव आज भी हैं काफी हरे,
निशाँ मिट चुके पर एहसास आज भी नहीं भरे,
पर आज फिर से खड़ा है मेरी शान,मेरी आन , वाह ताज!!!
ना आज़माना और मुझे,
सबर के हद्द सारे कर दिए मैंने पार,
इस बार खबरदार!!!!
क्यों कि पलट के कर दूंगा वार!!!
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